Wednesday, March 27, 2013

Roop Bhole Ka Bhiksha Mangane Wala Dekha

Roop Bhole Ka Bhiksha Mangane Wala Dekha
Gale Jhooli Aou Liye Haath Mein Mala Dekha

Lagaya Bhasm Ang-Ang Baghambhar Dhare
Sheeshe Pe Gang Shamboo Roop Nirala Dekha

Naag Lapete Hain Gale Mund Ki Mala Daale
Netra Hain Lal Bhang Ka Nasha Dhala Dekha

Nadiya Saath Mein Damroo Trishul Haath Liye
Kisi Ke Dhyan Mein Bhole Ko Matwala Dekha

Lagaye Ter-Ber-Ber Nand Ke Dware
Yasoda Se Shamboo Ne Nand Ka Lala Dekha.


Sun Bum-Bum Kaawariyaan Ki Jhatka Laage Se

Om Namah Shivaya
Om Namah Shivaya
Bum Bum Bhole
Kandhe Kaanvar Ganga Jal Aur Bum Bhole Ka Naam
Jo Maa Ganga Aur Mahadev
Bas Jaane Do Hi Naam - 2

Shiv Shankar Ne Bhi Bhitar Jiske Hatka Laage Se
Sun Bum-Bum Kaawariyaan Ki Jhatka Laage Se

Chale Jhumate Mast Malang Shiv Ji Ke Chore Se,
Sacchi Jyot Jalave Bhole Prem Hilaure Se

Papi Mein Dar Hardam Inke Lagta Laage Se
Sun Bum-Bum Kaawariyaan Ki Jhatka Laage Se

Bum-Bum Bhola Bum Karte Jab Yeh Yaavar Laage Se,
Yo Ram Late Mein Utare Se Jab Gaavar Laage Se

Inki Taraj Mein Ek Gajab Ka Latka Laage Se,
Sun Bum-Bum Kaawariyaan Ki Jhatka Laage Se

Maya Ke Challe Na Dekhe Na Dekhenge Dhaam,
Alhad Bhole Fhakkad Yogi, Na Karte Visharam

Ismein Dariya Ismein Kora Matka Laage Se
Sun Bum-Bum Kaawariyaan Ki Jhatka Laage Se

Ganga Mein Shiva, Shiva Ganga Mein Bail Savari Se
Kanwariyaan Bhaiya Pe Shiva Ki Kripa Bhari Se
Naina Kaise Satkegi Taka Khatka Laage Se.

Sun Bum-Bum Kaawariyaan Ki Jhatka Laage Se  

Monday, March 25, 2013

श्री शिवाष्टक स्तोत्रं

जय शिवशंकर, जय गंगाधर, करुणा-कर करतार हरे,
जय कैलाशी, जय अविनाशी, सुखराशि, सुख-सार हरे
जय शशि-शेखर, जय डमरू-धर जय-जय प्रेमागार हरे,
जय त्रिपुरारी, जय मदहारी, अमित अनन्त अपार हरे,
निर्गुण जय जय, सगुण अनामय, निराकार साकार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥
जय रामेश्वर, जय नागेश्वर वैद्यनाथ, केदार हरे,
मल्लिकार्जुन, सोमनाथ, जय, महाकाल ओंकार हरे,
त्र्यम्बकेश्वर, जय घुश्मेश्वर भीमेश्वर जगतार हरे,
काशी-पति, श्री विश्वनाथ जय मंगलमय अघहार हरे,
नील-कण्ठ जय, भूतनाथ जय, मृत्युंजय अविकार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥
जय महेश जय जय भवेश, जय आदिदेव महादेव विभो,
किस मुख से हे गुरातीत प्रभु! तव अपार गुण वर्णन हो,
जय भवकार, तारक, हारक पातक-दारक शिव शम्भो,
दीन दुःख हर सर्व सुखाकर, प्रेम सुधाधर दया करो,
पार लगा दो भव सागर से, बनकर कर्णाधार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥
जय मन भावन, जय अति पावन, शोक नशावन,
विपद विदारन, अधम उबारन, सत्य सनातन शिव शम्भो,
सहज वचन हर जलज नयनवर धवल-वरन-तन शिव शम्भो,
मदन-कदन-कर पाप हरन-हर, चरन-मनन, धन शिव शम्भो,
विवसन, विश्वरूप, प्रलयंकर, जग के मूलाधार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥
भोलानाथ कृपालु दयामय, औढरदानी शिव योगी, सरल हृदय,
अतिकरुणा सागर, अकथ-कहानी शिव योगी, निमिष में देते हैं,
नवनिधि मन मानी शिव योगी, भक्तों पर सर्वस्व लुटाकर, बने मसानी
शिव योगी, स्वयम्‌ अकिंचन,जनमनरंजन पर शिव परम उदार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥
आशुतोष! इस मोह-मयी निद्रा से मुझे जगा देना,
विषम-वेदना, से विषयों की मायाधीश छड़ा देना,
रूप सुधा की एक बूँद से जीवन मुक्त बना देना,
दिव्य-ज्ञान- भंडार-युगल-चरणों को लगन लगा देना,
एक बार इस मन मंदिर में कीजे पद-संचार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥
दानी हो, दो भिक्षा में अपनी अनपायनि भक्ति प्रभो,
शक्तिमान हो, दो अविचल निष्काम प्रेम की शक्ति प्रभो,
त्यागी हो, दो इस असार-संसार से पूर्ण विरक्ति प्रभो,
परमपिता हो, दो तुम अपने चरणों में अनुरक्ति प्रभो,
स्वामी हो निज सेवक की सुन लेना करुणा पुकार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥
तुम बिन ‘बेकल’ हूँ प्राणेश्वर, आ जाओ भगवन्त हरे,
चरण शरण की बाँह गहो, हे उमारमण प्रियकन्त हरे,
विरह व्यथित हूँ दीन दुःखी हूँ दीन दयालु अनन्त हरे,
आओ तुम मेरे हो जाओ, आ जाओ श्रीमंत हरे,
मेरी इस दयनीय दशा पर कुछ तो करो विचार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥
॥ इति श्री शिवाष्टक स्तोत्रं संपूर्णम्‌ ॥

Sunday, March 24, 2013

Lambi-Lambi re katar Neelkanth Mandir Mein

Lambi-Lambi re katar Neelkanth Mandir Mein
Lambi-Lambi re katar Neelkanth Mandir Mein
Lambi-Lambi re katar Neelkanth Mandir Mein
Lambi-Lambi re katar Neelkanth Mandir Mein

Bhakt bhi bhole baba bhole nath ke
Jab-Jab aave bin barsat ke
Bum-Bum ki bhole jai-jaikar, Neelkanth Mandir Mein.
Lambi-Lambi re katar Neelkanth Mandir Mein

Saavan mahine mein mela bharta
Ganga nahavan mein mann karta
Bhar jaave poora Haridwar,Ganga Ji ke Mandir Mein.
Lambi-Lambi re katar Neelkanth Mandir Mein

Chaddani pade jab unchhi chaddai
Bum-Bum bhole ke chadd ja bhai
Chaddane mein lage na vaar, Neelkanth Mandir Mein
Lambi-Lambi re katar Neelkanth Mandir Mein

"Kamal Singh" Dekh raha nazara
Bhole ki daya se chalta guzara
Hardum bole Jai-Jaikar, Neelkanth Mandir Mein 
Lambi-Lambi re katar Neelkanth Mandir Mein.

Are Re Meri Jaan Hai Gaura - अरे रे मेरी जान रे गौरा बात ले मान रे गौरा

अरे रे मेरी जान रे गौरा
बात ले मान रे गौरा

बता दे तू नाटे मेरे सामने
खाले वूदी सोटा गौरा घोटा लादे रे,
बम-बम भोले ने तू भाँग का लोटा पिया दे रे
बम-बम उतरे से जरुर मेरा भेद दिखा दे रे
निर्मल तण में होरा गौरा मेरा मूड बना दे रे
अरे रे मेरी जान रे गौरा

बात ले मान रे गौरा

बता दे तू नाटे मेरे सामने
तोड़ के हरी-हरी मैं भंगिया लाया रे 
भाँग धतूरा साधू खातिर ठीक बताया रे 
मेरे सोख की चीज़ तने तू नाक चढ़ाया रे
कितनी कहली एक तलक न घोटा लाया रे

अरे रे मेरी जान रे गौरा
बात ले मान रे गौरा

बता दे तू नाटे मेरे सामने

जाने से तू बर्फीली लेके कैलाश पे डेरा 
अटल समाधी लाण गौरा काम है मेरा 
राख घोट के पीजा तन्ने खूब सवेरा
भोला मांगे भांग पियाण काम से तेरा
अरे रे मेरी जान रे गौरा
बात ले मान रे गौरा

बता दे तू नाटे मेरे सामने

बिना कहे पिया दे बेर लाया न करो
भाँग खातिर तन में गुस्सा ढाया न करो
बैठो मेरे पास दूर जाया न करो, बम-बम
मन के कमल को मुरझाया न करो
अरे रे मेरी जान रे गौरा
बात ले मान रे गौरा

बता दे तू नाटे मेरे सामने

घोटा लवण की कह तू डेर थोडा रूठे से
जिसमें तुलसा बित्ता पहाड़ टूटे से
भोले के संग रहके गौरा मौज लूटे से
कितनी जल्दी भाँग की न वाण छूटे से
अरे रे मेरी जान रे गौरा
बात ले मान रे गौरा

बता दे तू नाटे मेरे सामने


Friday, March 22, 2013

शिव चालीसा

दोहा
जय गणेश गिरिजासुवन मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम देउ अभय वरदान॥

जय गिरिजापति दीनदयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नाग फनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन क्षार लगाये॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देखि नाग मन मोहे॥
मैना मातु कि हवे दुलारी। वाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नंदी गणेश सोहैं तहं कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि कौ कहि जात न काऊ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा। तबहिं दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लव निमेष महं मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। तबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद माहि महिमा तुम गाई। अकथ अनादि भेद नहीं पाई॥
प्रकटे उदधि मंथन में ज्वाला। जरत सुरासुर भए विहाला॥
कीन्ह दया तहं करी सहाई। नीलकंठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचंद्र जब कीन्हां। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं त्रिपुरारी।
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सबके घट वासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावैं। भ्रमत रहौं मोहे चैन न आवैं॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यह अवसर मोहि आन उबारो॥
ले त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहिं आन उबारो॥
मात पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु मम संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदा ही। जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करों तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। शारद नारद शीश नवावैं॥
नमो नमो जय नमः शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पर होत हैं शम्भु सहाई॥
रनियां जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र होन की इच्छा जोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे॥
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा। तन नहिं ताके रहै कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्त धाम शिवपुर में पावे॥
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी। जानि सकल दुख हरहु हमारी॥

दोहा
नित नेम उठि प्रातः ही पाठ करो चालीसा।
तुम मेरी मनकामना पूर्ण करो जगदीश॥

श्री शिव अष्टकम

श्री शिव अष्टकम

प्रभुं प्राणनाथं विभुं विश्वनाथं जगन्नाथ नाथं सदानन्द भाजाम् ।
भवद्भव्य भूतॆश्वरं भूतनाथं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडॆ ॥ 1 ॥

गलॆ रुण्डमालं तनौ सर्पजालं महाकाल कालं गणॆशादि पालम् ।
जटाजूट गङ्गॊत्तरङ्गै र्विशालं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडॆ ॥ 2॥

मुदामाकरं मण्डनं मण्डयन्तं महा मण्डलं भस्म भूषाधरं तम् ।
अनादिं ह्यपारं महा मॊहमारं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडॆ ॥ 3 ॥

वटाधॊ निवासं महाट्टाट्टहासं महापाप नाशं सदा सुप्रकाशम् ।
गिरीशं गणॆशं सुरॆशं महॆशं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडॆ ॥ 4 ॥

गिरीन्द्रात्मजा सङ्गृहीतार्धदॆहं गिरौ संस्थितं सर्वदापन्न गॆहम् ।
परब्रह्म ब्रह्मादिभिर्-वन्द्यमानं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडॆ ॥ 5 ॥

कपालं त्रिशूलं कराभ्यां दधानं पदाम्भॊज नम्राय कामं ददानम् ।
बलीवर्धमानं सुराणां प्रधानं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडॆ ॥ 6 ॥

शरच्चन्द्र गात्रं गणानन्दपात्रं त्रिनॆत्रं पवित्रं धनॆशस्य मित्रम् ।
अपर्णा कलत्रं सदा सच्चरित्रं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडॆ ॥ 7 ॥

हरं सर्पहारं चिता भूविहारं भवं वॆदसारं सदा निर्विकारं।
श्मशानॆ वसन्तं मनॊजं दहन्तं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडॆ ॥ 8 ॥

स्वयं यः प्रभातॆ नरश्शूल पाणॆ पठॆत् स्तॊत्ररत्नं त्विहप्राप्यरत्नम् ।
सुपुत्रं सुधान्यं सुमित्रं कलत्रं विचित्रैस्समाराध्य मॊक्षं प्रयाति ॥

शिवाष्टक आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा रचित

प्रस्तुत शिवाष्टक आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा रचित है। आठ पदों में विभक्त यह रचना परंब्रह्म शिव की पुजा एक उत्तम साधन है ।

तस्मै नम: परमकारणकारणाय , दिप्तोज्ज्वलज्ज्वलित पिङ्गललोचनाय । 
नागेन्द्रहारकृतकुण्डलभूषणाय , ब्रह्मेन्द्रविष्णुवरदाय नम: शिवाय ॥ 1 ॥
जो (शिव) कारणों के भी परम कारण हैं, ( अग्निशिखा के समान) अति दिप्यमान उज्ज्वल एवं पिङ्गल नेत्रोंवाले हैं, सर्पों के हार-कुण्डल आदि से भूषित हैं तथा ब्रह्मा, विष्णु, इन्द्रादि को भी वर देने वालें हैं – उन शिव जी को नमस्कार करता हूँ।

श्रीमत्प्रसन्नशशिपन्नगभूषणाय , शैलेन्द्रजावदनचुम्बितलोचनाय । 
कैलासमन्दरमहेन्द्रनिकेतनाय , लोकत्रयार्तिहरणाय नम: शिवाय ॥ 2 ॥
जो निर्मल चन्द्र कला तथा सर्पों द्वारा ही भुषित एवं शोभायमान हैं, गिरिराजग्गुमारी अपने मुख से जिनके लोचनों का चुम्बन करती हैं, कैलास एवं महेन्द्रगिरि जिनके निवासस्थान हैं तथा जो त्रिलोकी के दु:ख को दूर करनेवाले हैं, उन शिव जी को नमस्कार करता हूँ।

पद्मावदातमणिकुण्डलगोवृषाय , कृष्णागरुप्रचुरचन्दनचर्चिताय । 
भस्मानुषक्तविकचोत्पलमल्लिकाय , नीलाब्जकण्ठसदृशाय नम: शिवाय ॥ 3 ॥
जो स्वच्छ पद्मरागमणि के कुण्डलों से किरणों की वर्षा करने वाले हैं, अगरू तथा चन्दन से चर्चित तथा भस्म, प्रफुल्लित कमल और जूही से सुशोभित हैं ऐसे नीलकमलसदृश कण्ठवाले शिव को नमस्कार है ।

लम्बत्स पिङ्गल जटा मुकुटोत्कटाय , दंष्ट्राकरालविकटोत्कटभैरवाय । 
व्याघ्राजिनाम्बरधराय मनोहराय , त्रिलोकनाथनमिताय नम: शिवाय ॥ 4 ॥
जो लटकती हुई पिङ्गवर्ण जटाओंके सहित मुकुट धारण करने से जो उत्कट जान पड़ते हैं तीक्ष्ण दाढ़ों के कारण जो अति विकट और भयानक प्रतीत होते हैं, साथ ही व्याघ्रचर्म धारण किए हुए हैं तथा अति मनोहर हैं, तथा तीनों लोकों के अधिश्वर भी जिनके चरणों में झुकते हैं, उन शिव जी को नमस्कार करता हूँ।

दक्षप्रजापतिमहाखनाशनाय , क्षिप्रं महात्रिपुरदानवघातनाय । 
ब्रह्मोर्जितोर्ध्वगक्रोटिनिकृंतनाय , योगाय योगनमिताय नम: शिवाय ॥ 5 ॥
जो दक्षप्रजापति के महायज्ञ को ध्वंस करने वाले हैं, जिन्होने परंविकट त्रिपुरासुर का तत्कल अन्त कर दिया था तथा जिन्होंने दर्पयुक्त ब्रह्मा के ऊर्ध्वमुख (पञ्च्म शिर) को काट दिया था, उन शिव जी को नमस्कार करता हूँ।

संसारसृष्टिघटनापरिवर्तनाय , रक्ष: पिशाचगणसिद्धसमाकुलाय । 
सिद्धोरगग्रहगणेन्द्रनिषेविताय , शार्दूलचर्मवसनाय नम: शिवाय ॥ 6 ॥
जो संसार मे घटित होने वाले सम्सत घटनाओं में परिवर्तन करने में सक्षम हैं, जो राक्षस, पिशाच से ले कर सिद्धगणों द्वरा घिरे रहते हैं (जिनके बुरे एवं अच्छे सभि अनुयायी हैं); सिद्ध, सर्प, ग्रह-गण एवं इन्द्रादिसे सेवित हैं तथा जो बाघम्बर धारण किये हुए हैं, उन शिव जी को नमस्कार करता हूँ।

भस्माङ्गरागकृतरूपमनोहराय , सौम्यावदातवनमाश्रितमाश्रिताय । 
गौरीकटाक्षनयनार्धनिरीक्षणाय , गोक्षीरधारधवलाय नम: शिवाय ॥ 7 ॥
जिन्होंने भस्म लेप द्वरा सृंगार किया हुआ है, जो अति शांत एवं सुन्दर वन का आश्रय करने वालों (ऋषि, भक्तगण) के आश्रित (वश में) हैं, जिनका श्री पार्वतीजी कटाक्ष नेत्रों द्वरा निरिक्षण करती हैं, तथा जिनका गोदुग्ध की धारा के समान श्वेत वर्ण है, उन शिव जी को नमस्कार करता हूँ।

आदित्य सोम वरुणानिलसेविताय , यज्ञाग्निहोत्रवरधूमनिकेतनाय । 
ऋक्सामवेदमुनिभि: स्तुतिसंयुताय , गोपाय गोपनमिताय नम: शिवाय ॥ 8 ॥
जो सूर्य, चन्द्र, वरूण और पवन द्वार सेवित हैं, यज्ञ एवं अग्निहोत्र धूममें जिनका निवास है, ऋक-सामादि, वेद तथा मुनिजन जिनकी स्तुति करते हैं, उन नन्दीश्वरपूजित गौओं का पालन करने वाले शिव जी को नमस्कार करता हूँ।

Saturday, March 9, 2013

प्रभु मेरे मन को बना दे शिवाला

प्रभु मेरे मन को बना दे शिवाला,
तेरे नाम की मैं जपूं रोज माला ।
अब तो मनो कामना है यह मेरी,
जिधर देखूं नज़र आए डमरू वाला ॥

कहीं और क्यूँ ढूँढने तुझ को जाऊं,
प्रभु मन के भीतर ही मैं तुझ को पाऊं ।
यह मन का शिवाला हो सब से निराला,
जिधर देखूं नज़र आए डमरू वाला ॥

भक्ति पे है अपनी विशवास मुझ को,
बनाएगा चरणों का तू दास मुझ को ।
मैं तुझ से जुदा अब नहीं रहने वाला,
जिधर देखूं नज़र आए डमरू वाला ॥

तू दर्पण सा उजला मेरे मन को करदे,
तू अपना उजाला मेरे मन में भरदे ।
हैं चारो दिशाओं में तेरा उजाला,
जिधर देखूं नज़र आए डमरू वाला ॥

शंकर साम्ब शिव हर हर शंकर साम्ब शिव जय जय शंकर

शंकर साम्ब शिव हर हर शंकर साम्ब शिव जय जय शंकर
गंगा जटाधर गौरी महेश चंद्र कलाधर हे परमेश
कैलासवास काशी पते करुणा सागर गौरी पते

गंगा जटाधर गौरी शंकर गिरिजा मनरमण
जय मृत्युंजय महादेव महेश्वर मनग शुभ चरण
नंदी वाहन नाग भूषण निरुपम गुणसदन
नटनमनोहर नील कण्ठ हर नीरजदल नयन

ॐ शिव ॐ शिव परात्पर शिव ओंकार शिव तव शरणं
नमामि शंकर भजामि शंकर उमामहेश्वर तव शरणं
गौरी शंकर शम्भो शंकर साम्ब सदाशिव तव शरणं

शिव शंकर पार्वती रमण गंगाधर भुवन धारण
शरणागत वंदित शरण करुणाकर भवभय हरण

नन्दीश्वर हे नटराज नंदात्मज हरि नारायण
नागभरण नमः शिवाय नादस्वरूप नमो नमो
शम्भो महादेव मल्लिकार्जुन मंगल चरण त्रिलोचन
शुभ मंगल चरण त्रिलोचन पिनाकधारी पार्वतीरमण
भवभय हरण सनातन पार्वतीरमण पतितपावन

शिव शम्भो शम्भो शिव शम्भो महादेव
हर हर महादेव शिव शम्भो महादेव
हल हल धर शम्भो अनाथ नाथ शम्भो
हरि ॐ हरि ॐ हरि ॐ नमः शिवाय

गंगाधर शिव गौरी शिव शम्भो शंकर साम्ब शिव
जय जगदीश्वर जय परमेश्वर हे जगदीश जगदीश्वर
विश्वाधार विश्वेश्वर शम्भो शंकर साम्ब शिव

मेरे मन बनकर तू डमरू करता जा डम-डम-डम

मेरे मन बनकर तू डमरू करता जा डम-डम-डम
तेरी डम -डम में गूंजेंगी मेरे भोले की बम-बम
मेरे मन बनकर तू डमरू करता जा डम-डम-डम

मेरा भोला सब भक्तों के है सारे कष्ट मिटाता
वो भक्तों की रक्षा हित है कालकूट पी जाता
मेरी जिह्वा करती चल तू शिव महिमा का ही वर्णन
मेरे मन बनकर तू डमरू करता जा डम-डम-डम
 
 मेरा भोला कितना भोला नागों का हार पहनता
वो जटाजूट में अपने गंगा को धारण करता
मैं कण -कण में करती हूँ शिव-शंकर का ही दर्शन .
मेरे मन बनकर तू डमरू करता जा डम-डम-डम

सावन में कांवड़ लेकर जो गंगाजल लेने जाते
लाकर शिवलिंग पर उसको श्रृद्धा सहित चढाते
हर इच्छा पूरी होती पावन हो जाता जीवन .
मेरे मन बनकर तू डमरू करता जा डम-डम-डम
 
 द्वादश ज्योतिर्लिंगों में शिव -शक्ति ज्योत समाई ;
इनके दर्शन से भक्तों ने भय से मुक्ति पाई ;
गौरी-शंकर के चरणों में तन -मन-धन सब अर्पण
मेरे मन बनकर तू डमरू करता जा डम-डम-डम

ॐ नमः शिवाय भोलेनाथ, भोलेनाथ

ॐ नमः शिवाय भोलेनाथ, भोलेनाथ
तेरी रचना है न्यारी, तू ही जाने त्रिपुरारी
साजी तूने रंगीली क़ायनात
भोलेनाथ, भोलेनाथ
सृष्टि बनाने वाला तू
हर मन को भाने वाला तू
साजे माथे पे चंदा, और जटाओं पे गंगा
रूप सुंदर, निराली सब से बात
भोलेनाथ, भोलेनाथ
काल महाकाल गंगाधर
शेषनागधारी ईश्वर
तुम्हें दिल में बसा कर
तेरे चरणों में आकर
यूं ही बना रहे साथ
भोलेनाथ, भोलेनाथ
चिंतन करूं मैं हर क्षण
तेरा ही पाऊं दरश्न
और चाहत ना कोय
ध्यान सिमरूं मैं तोहे
जीवन ये मांगे ख़ैरात
भोलेनाथ, भोलेनाथ

मंगलकारी शिव का नाम

मंगलकारी शिव का नाम ।
चरण हैं शिव के सुख का धाम ॥

पात पात में वो घाट में, फैली उनकी माया ।
जिस के मन में वो बस जाए, मंदिर बनती काया ।
जिस पर शिव जी कृपा करते, बनते काम तमाम ॥

वो ही जगत का करता धर्ता, वो ही जग के सवामी ।
भक्त जनों के मन की जाने, वो ही अन्तर्यामी ।
उनकी शरण में जा के मनवा, पाता है विश्राम ॥

दर दा भिखारी शम्बू, मैनू ठुकरावीं ना ।

दर दा भिखारी शम्बू, मैनू ठुकरावीं ना ।
जग ने रुलाया शम्बू, तू वी रुलावी ना ॥

चाँद ते सितारे तेरी आरती उतारदे,
गांदे ने गीत भोले नित्त तेरे प्यार दे ।
दासां तो उदास होके, दर तों उठावी ना,
जग ने रुलाया शम्बू, तू वि रुलावी ना ॥

धी पुत्त सो सो गलतीयां करदे,
माँ बाप ज़रा वी ना वलवला करदे ।
गलतियाँ मेरिया नु, दिल ते लावी ना,
जग ने रुलाया शम्बू, तू वि रुलावी ना ॥

तेरा दर छोड़ के कहदे दर जावां,
जग है पराया, किसे अपना बनावा ।
सारे दर के छोड़ के मैं तेरा दर मलेआ,
जग ने रुलाया शम्बू, तू वि रुलावी ना ॥

धन धन भोलेनाथ तुम्हारे कौड़ी नहीं खजाने में,

धन धन भोलेनाथ तुम्हारे कौड़ी नहीं खजाने में,
तीन लोक बस्ती में बसाये आप बसे वीराने में |

जटा जूट के मुकुट शीश पर गले में मुंडन की माला,
माथे पर छोटा चन्द्रमा कृपाल में करके व्याला |

जिसे देखकर भय ब्यापे सो गले बीच लपटे काला,
और तीसरे नेत्र में तेरे महा प्रलय की है ज्वाला |

पीने को हर भंग रंग है आक धतुरा खाने का,
तीन लोक बस्ती में बसाये आप बसे वीराने में |

नाम तुम्हारा है अनेक पर सबसे उत्तत है गंगा,
वाही ते शोभा पाई है विरासत सिर पर गंगा |

भूत बोतल संग में सोहे यह लश्कर है अति चंगा,
तीन लोक के दाता बनकर आप बने क्यों भिखमंगा |

अलख मुझे बतलाओ क्या मिलता है अलख जगाने में,
ये तो सगुण स्वरूप है निर्गुन में निर्गुन हो जाये |

पल में प्रलय करो रचना क्षण में नहीं कुछ पुण्य आपाये,
चमड़ा शेर का वस्त्र पुराने बूढ़ा बैल सवारी को |

जिस पर तुम्हारी सेवा करती, धन धन शैल कुमारी को,
क्या जान क्या देखा इसने नाथ तेरी सरदारी को |
सुन तुम्हारी ब्याह की लीला भिखमंगे के गाने में,
तीन लोक बस्ती में बसाये आप बसे वीराने में |

किसी का सुमिरन ध्यान नहीं तुम अपने ही करते हो जाप,
अपने बीच में आप समाये आप ही आप रहे हो व्याप |
हुआ मेरा मन मग्न ओ बिगड़ी ऐसे नाथ बचाने में,
तीन लोक बस्ती में बसाये आप बसे वीराने में |

कुबेर को धन दिया आपने, दिया इन्द्र को इन्द्रासन,
अपने तन पर ख़ाक रमाये पहने नागों का भूषण |
मुक्ति के दाता होकर मुक्ति तुम्हारे गाहे चरण,
"भक्त ये नाथ तुम्हारे हित से नित से करो भजन |
तीन लोक बस्ती में बसाये आप बसे वीराने में |

भजन भोले शंकर का करते रहोगे

भजन भोले शंकर का करते रहोगे
तो संसार सागर से तरते रहोगे

कृपानाथ वे शक मिलेंगे किसी दिन
जो सत्संग पथ से गुजरते रहोगे
तो संसार सागर से तरते रहोगे

चढोगे ह्रदय पर सभी के सदा तुम
जो अभिमान गिरी से उतरते रहोगे
तो संसार सागर से तरते रहोगे

न होगा कभी क्लेश मन को तुम्हारे
जो अपनी बड़ाई से डरते रहोगे
तो संसार सागर से तरते रहोगे

छलक ही पड़ेगा दया सिन्धु का दिल
जो दृग बिंदु से रोज भरते रहोगे
तो संसार सागर से तरते रहोगे

जय जयति जगदाधार जगपति जय महेश नमामिते

जय जयति जगदाधार जगपति जय महेश नमामिते
वाहन वृषभ वर सिद्धि दायक विश्वनाथ उमापते
सिर गंग भव्य भुजंग भूसन भस्म अंग सुसोभिते
सुर जपति शिव, शशि धर कपाली, भूत पति शरणागते

जय जयति गौरीनाथ जय काशीश जय कामेश्वरम
कैलाशपति, जोगीश, जय भोगीश, वपु गोपेश्वरम
जय नील लोहित गरल-गर-हर-हर विभो विश्वंभरम
रस रास रति रमणीय रंजित नवल नृत्यति नटवरम

तत्तत्त ताता ता तताता थे इ तत्ता ताण्डवम
कर बजत डमरू डिमक-डिम-डिम गूंज मृदु गुंजित भवम
बम-बम बदत वेताल भूत पिशाच भूधर भैरवम
जय जयति खेचर यक्ष किन्नर नित्य नव गुण गौरवम

जय प्रणति जन पूरण मनोरथ करत मन महि रंजने
अघ मूरि हारी धूरि जटि तुम त्रिपुर अरि-दल गंजने
जय शूल पाणि पिनाक धर कंदर्प दर्प विमोचने
'प्रीतम' परसि पद होइ पावन हरहु कष्ट त्रिलोचने

सत्य, सनातन, सुन्दर, शिव! सबके स्वामी।

सत्य, सनातन, सुन्दर, शिव! सबके स्वामी।
अविकारी, अविनाशी, अज, अन्तर्यामी ॥1॥ हर हर.॥

आदि, अनन्त, अनामय, अकल, कलाधारी।
अमल, अरूप, अगोचर, अविचल, अघहारी ॥2॥ हर हर.॥

ब्रह्मा, विष्णु महेश्वर, तुम त्रिमूर्तिधारी।
कर्ता, भर्ता, धर्ता तुम ही संहारी ॥3॥ हर हर.॥

रक्षक, भक्षक, प्रेरक, प्रिय, औढरदानी।
साक्षी, परम अकर्ता, कर्ता, अभिमानी ॥4॥ हर हर.॥

मणिमय-भवन निवासी, अति भोगी, रागी.
सदा श्मशान विहारी, योगी वैरागी ॥5॥ हर हर.॥

छाल-कपाल,गरल-गल, मुण्डमाल,व्याली।
चिताभस्मतन, त्रिनयन, अयनमहाकाली ॥6॥ हर हर.॥

प्रेत-पिशाच-सुसेवित, पीतजटाधारी।
विवसन विकट रूपधर रुद्र प्रलयकारी ॥7॥ हर हर.॥

शुभ्र-सौम्य, सुरसरिधर, शशिधर, सुखकारी।
अतिकमनीय, शांतिकर, शिवमुनि-मन-हारी ॥8॥ हर हर.॥

निर्गुण, सगुण, निरंजन, जगमय, नित्य-प्रभो।
कालरूप केवल हर! कालातीत विभो ॥9॥ हर हर.॥

सत्‌, चित्‌, आनंद, रसमय, करुणामय धाता।
प्रेम-सुधा-निधि, प्रियतम, अखिल विश्वत्राता ॥10॥ हर हर.॥

हम अतिदीन, दयामय! चरण-शरण दीजै।
सब बिधि निर्मल मति कर अपना कर लीजै ॥11॥ हर हर.॥

भोले भंडारी, नाथ प्रभु त्रिपुरारी बेड़ा करेंगे तेरा पार

भोले भंडारी, नाथ प्रभु त्रिपुरारी बेड़ा करेंगे तेरा पार
भजन कर भोले नाथ का
भोले भंडारी, नाथ प्रभु त्रिपुरारी बेड़ा करेंगे तेरा पार

शिव शंकर भोले भले, तेरे बिगड़े काज संभाले
शिव शंकर भोले भले, तेरे बिगड़े काज संभाले
खोले क़िस्मत के ताले, तेरी हर विपदा को टाले
दुनिया में दाता नहीं, कोई नहीं, मेरे भोलेनाथ-सा
भोले भंडारी, नाथ प्रभु त्रिपुरारी बेड़ा करेंगे तेरा पार
भोले भंडारी, नाथ प्रभु त्रिपुरारी बेड़ा करेंगे तेरा पार

भोले बाबा भंडारी, भंडार भरेंगे तेरे
भोले बाबा भंडारी, भंडार भरेंगे तेरे
शंकर शम्भू त्रिपुरारी, दुःख दूर करेंगे तेरे
अरे उनसे ना कुछ भी छिपा, सब है पता
तेरे मन की बात का
के भोले भंडारी, नाथ प्रभु त्रिपुरारी बेड़ा करेंगे तेरा पार

मेरे बाबा डमरू-वाले इस जग बगिया के माली
मेरे बाबा डमरू-वाले इस जग बगिया के माली
उनके हर खेल निराले, है लीला अजब निराली
पाया है, कोई पार ना, कोई यहाँ, मेरे भोलेनाथ का
भोले भंडारी, नाथ प्रभु त्रिपुरारी बेड़ा करेंगे तेरा पार
 के भोले भंडारी, नाथ प्रभु त्रिपुरारी बेड़ा करेंगे तेरा पार

कट जाए तेरे फेरे, जो जयशिव-जयशिव बोले
कट जाए तेरे फेरे, जो जयशिव-जयशिव बोले
हो जाएँ दूर अँधेरे, जो मन की आँखे खोले
अरे करता जा नादान तू, गुणगान तू
शिव भोलेनाथ का के भोले भंडारी,
नाथ प्रभु त्रिपुरारी बेड़ा करेंगे-बेड़ा करेंगे तेरा पार

प्यारा लागे भोलानाथ मोरी मैया मोय प्यारा लागे

प्यारा लागे भोलानाथ मोरी मैया मोय प्यारा लागे ।।
देवन में महादेव बड़ा है,
सब जुग जश विख्यात मेरी मैया ।। प्यारा
लागे।।

भेष अनेक करे भोलाशंभु,
माया है उनके हाथ मोरी मैया ।। प्यारा
लागे।।

जन्म जन्म के वो पती हमारे,
मैं हूँ उनके साथ मोरी मैया ।। प्यारा
लागे।।

नंदीगण असवारी है शिव के,
भूत प्रेत रहे साथ मोरी मैया ।। प्यारा
लागे।।

आदि पुरुष अविनाशी है शिवजी,
तीन लोक के नाथ मोरी मैया ।। प्यारा
लागे।।

सुरनर मुनिजन सब गुण गावे,
वेद शास्त्र विख्यात मोरी मैया ।। प्यारा
लागे।।

हंसराज हर हर गुण गावे,
भव सागर तिर जात मोरी मैया ।। प्यारा
लागे।।

सदाशिव शरणा तेरा सब अपराध क्षमा कर मेरा

सदाशिव शरणा तेरा सब अपराध क्षमा कर मेरा ।।
लख चौरासी भटकत घाया गर्भवास में अति दुख पाया.
जब ईश्वर से अरज सुनाया, कोल वचन गया भूल मोह माया ने घेरा रे ।। सदाशिव ।।

बालपना हंस खेल गंवाया चकरी भॅंवरा खूब चलाया,
शिव सुमरण मन में नहीं लाया, छाय रहा अ्रान ध्यान हिरदे नहीं ठेरा रे ।।सदाशिव।।

करुण हुआ तन यौवन छाया निशि दिन ऐस आराम जमाया,
तिरिया तीरथ कर सुख पाया, होय रयाअंधा धुंध छाय रया घोर अंधेरा रे ।। सदाशिव ।।

वृद्धावस्था ऐसी आई ताकत रही नहीं तन माई,
सुध बुध शक्ति सभी बिसराई, मान नहीं मर्याद हुआ एकान्त में डेरा रे ।। सदाशिव ।।

तीन अवस्था मुफत गवांई नेमधरम कुछ कीना नांई,
जन्म बीत गया बातां मांई, लाख गुनाह कर माफ पुरबला पाप समेरा रे ।। सदाशिव ।।

पाप पुण्य परगट जुगमांई अज्ञानी नर समझे नाहीं,
माफ करो शंकर सुखदाई, हंसराज रख लाज पारकर बेड़ा मेरा रे ।। सदाशिव ।।

बाबा अमरनाथ की जय, बोलो शिव शंकर की जय

बाबा अमरनाथ बर्फानी, योगिराज दया के दानी |
भूखे को है भोजन देते और प्यासे को पानी ||
बाबा अमरनाथ की जय, बोलो शिव शंकर की जय ||

भक्तो के मन बसने वाले ये तो सब के स्वामी है |
मन चाहा फल देने वाले शंभू अंतरयामी है |
महादेव के दर्शन कर के, संवर जाये जिंदगानी ||

दया धरम के है यह दाता सारा ही संसार कहे |
जिधर दया की दृष्टि उधर कमी न कोई रहे |
हाथ है इसके लाज हमारी, यश लाभ और हानि ||

प्रभु नाम के हीरे मोती हर पल सदा लुटाते हैं |
अपने संतो भक्तो के संकट यह आप मिटाते हैं |
भोले नाथ की शक्ति है जी, जाने दुनिया फानी ||

कैलाशी काशी के वासी, सुनते नाथ सबकी करुणा

कैलाशी काशी के वासी, सुनते नाथ सबकी करुणा
मन की दुविधा दूर करो, बम भोले नाथ का लो शरणा ।।टेर ।।
एक समय देव दानवों ने मिलकर, क्षीर सिन्धु का मथन किया
रतन जो चौदह निकले उसमें, एक एक कर बॉंट लिया
अमृत धारण कियो देवता, जहर हलाहल शम्भु पिया
नीलकण्ठ तब नाम पड़ा, ओ कैलाशपुरी में वास किया
ऐसे भोले भण्डारी शिव का, ध्यान निरंतर सब धरणा ।। मन की ।।

कठिन तपस्या करी भस्मासुर, बारह मास लग्यो तपना
अंग अंग सब जार दियो, तब कैलाश छोड़ दिये दर्शना
मांगना है सो मांग भक्त तू, तोपर हूँ मैं बहुत प्रसन्न
देऊ राज तोहे तीन लोक का, रहे देवता तेरी शरण
वर दो नाथ हाथ धरूँ जिस पर होए तुरन्त उसका मरणा ।। मन की ।।

वरपा नियत ढीगी निशचर की शंकर को मारे चाहा
आगे आगे चले विश्म्भर वैकुण्ठ द्वार का लिया सहारा
खगपती चौकी देख शम्भु की उतर गयी तन कोपीनवार
देख दिगम्बर रूप शम्भु का लक्ष्मीजी दीना पट डार
ब्रह्मा विष्णु महेश एक है, इनमें अन्तर नहीं करना ।। मन की ।।

देखी ऐसी हालत शम्भु की, तुरन्त मोहिनी रूप धरे
जीत लिया निश्चर के मन को, तब यूं बोले वचन खरे
आक धतूरा पिने वाले का, क्या इसका एतबार करे
अपने सिर पर हाथ धरो तो, सांच झूठ की ठाह पड़े
मन निश्चय कियो निशाचर, देखा निश्चर का मरणा ।। मन की ।।

रतन जठित कैलाश शम्भु का मणि कपाट द्वार सजा
आक धतूरा तोता मैना, सब पंछी रहते ताजा
वाहन जिनका है नांदिया, सब देवन के हैं राजा
कामधेनु ओ कल्पवृक्ष नित ढमरू के बाजे बाजा
शिवलाल पसारी दास तुम्हारा प्रभु के चरण में चित धरणा ।। मन की ।।

भोले नाथ है तू मतवाला, तेरे गल सर्पन की माला

भोले नाथ है तू मतवाला, तेरे गल सर्पन की माला ।
तू है भक्तों का रखवाला, भोले भण्डारी, ओ भोले भण्डारी ।।

तेरी सूरत भोली भाली, जिस पर पारवती मतवाली ।
तू है तीन जहॉं का मालिक, भोले भण्डारी हो भोले।।

तेरी बैल सवारी साजे, तेरी जटा में गंगा बिराजे ।
तेरा डम-डम डमरू बाजै, भोले भण्डारी हो भोले।।

पारवती जब आई, तब सोने की लंका बनाई ।
उसकी रावण करे सफाई, भोले भण्डारी हो भोले।।

तेरा जो कोई ध्यान लगावे, उसका बेड़ा पार हो जावे,
तेरा प्रेम मण्डल गुण गावे, भोले भण्डारी हो भोले।।

जय महेश जय जय त्रिलोचन ।

जय महेश जय जय त्रिलोचन ।
भगत त्रास त्रय ताप विमोचन ।।
 
आशुतोष जय जलज विलोचन ।
भव सम्भव दारुण दुःख मोचन ।।
 
 जयति जयति जय जय त्रिपुरारी ।
दनुज देव सेवक नर नारी ।।
 
विश्वनाथ जय जय जग कर्ता ।
आदिदेव पालक संहर्ता ।।
 
जय गंगाधर जय अहि भूषण ।
विगत विकार रहित सब दूषण ।।
 
जगदगुरु जय जगत विभूषण ।
धारत सरिस सुता गिरि भूषण ।।
 
जयति दयाकर सर्वस दाता ।
समरथ सदा दीन हित राता ।।
 
वेद पुराण जगत यश जागै ।
संतोष भगति रघुपति की मागै ।।
 
भगत कामतरु करुणाधाम काशीनाथ विश्वम्भरं ।
दीनानाथ धरु मम सिर हाथ पाहि शंकर उमा वरं ।।

फ़रियाद मेरी सुनकर भोलेनाथ चले आना

फ़रियाद मेरी सुनकर भोलेनाथ चले आना
नित ध्यान धरूँ तेरा, बिगड़ी को बना जाना
तुझे अपना समझ कर फ़रियाद सुनाता हूँ
तेरे दर पर आकर में नित धुनी रमाता हूँ
फ़रियाद मेरी सुनकर भोलेनाथ चले आना
  
 क्यों भूल गए भगवन, मुझे समझ के बेगाना
मेरी नाव भंवर डोले, तुम ही खिवैया हो
जग के रखवारे तुम तुमही कन्हिया हो
करे बैल सवारी तुम, भाव पार लगा देना
फ़रियाद मेरी सुनकर भोलेनाथ चले आना
 
 तुम बिन न कोई मेरा अब नाथ सहारा है
इस जीवन को मैंने तुझ पर ही वारा है
मर्जी है तेरी बाबा अच्छा नहीं तड्पाना
फ़रियाद मेरी सुनकर भोलेनाथ चले आना

नैनों में भरे आंसू क्यों तरस न खाते हो
क्या दोष हुआ मुझसे मुझे क्यों ठुकराते हो
अब मेहर करो बाबा सुनकर मेरा अफसाना
फ़रियाद मेरी सुनकर भोलेनाथ चले आना

कल्पतरु पुण्यात्मा प्रेम सुधा शिव नाम

कल्पतरु पुण्यात्मा प्रेम सुधा शिव नाम
हितकारक संजीवनी शिव चिंतन अविराम
पतित पावन जैसे मधु शिव रस नाके घोल
भक्ति के हंसा ही चुगे मोंती यह अनमोल
जैसे तनिक सुहागा सोने को चमकाए
शिव सुमिरंसे आत्मा अदबुदथ निखरी जाये
जैसे चन्दन वृष को दंसते नहीं है नाग
शिव भक्तो के चोले को कभी लगे ना दाग
ॐ नम शिवाय (2)

दया निधि भूतेश्वर शिव है चतुर सुजन
कण कण भीतर है बसे नीलकंठ भगवान्
चंद्रचूड के नेत्र उमापति विश्वेश
शर्नागैत के यह सदा पके सकल अनेक
शिव द्वारे प्रपंच का छल नहीं सकता खेल
आग और पानी का जैसे होता नहीं है मेल
भयाभंजना नटराज है डमरू वाले नाथ
शिव ka वंदन जो करे शिव है उनके साथ
ॐ नम शिवाय (2)

लाखो अश्वादमेध हो सो गंगा अस्नान
इनसे उत्तम है कही शिव चरणों का ध्यान
अलख निरंजन नाथसे उपजे आत्मा ग्यान
भटके को रास्ता मिले मुशकिl हो आसान
अमर गुणों की खान है चित शुधि शिव ध्यान
सत संगती में बैठके करलो प्रस्च्याताप
लिंगेश्वर के मननसे सिद्ध हो जाते काज
नमो शिवाय रटता जा शिव रखेंगे लाज
ॐ नम शिवाय (2)

जय शिवशंकर जय गंगाधर करूणाकर करतार हरे।

जय शिवशंकर जय गंगाधर करूणाकर करतार हरे।
जय कैलाशी जय अविनाशी सुखराशी सुखसार हरे।
जय शशिशेखर जय डमरूधर जय जय प्रेमागार हरे।
जय त्रिपुरारी जय मदहारी नित्य अनन्त अपार हरे।
निर्गुण जय जय सगुण अनामय निराकार साकार हरे।
पारवती पति हर-हर शम्भो पाहि-पाहि दातार हरे।।
 
जय रामेश्वर जय नागेश्वर वैद्यनाथ केदार हरे।
मल्लिकार्जुन सोमनाथ जय महाकार ओंकार हरे।
जय त्रयम्बकेश्वर जय भुवनेश्वर भीमेश्वर जगतार हरे।
काशीपति श्री विश्वनाथ जय मंगलमय अधहार हरे।
नीलकंठ जय भूतनाथ जय मृतुंजय अविकार हरे।
पारवती पति हर-हर शम्भो पाहि-पाहि दातार हरे।।
 
भोलानाथ कृपालु दयामय अवढर दानी शिवयोगी।
निमिष मात्र में देते है नवनिधि मनमानी शिवयोगी।
सरल हृदय अति करूणासागर अकथ कहानी शिवयोगी।
भक्तों पर सर्वस्व लुटाकर बने मसानी शिवयोगी।
स्वयं अकिंचन जन मन रंजन पर शिव परम उदार हरे।
पारवती पति हर-हर शम्भो पाहि-पाहि दातार हरे।।
 
आशुतोष इस मोहमयी निद्रा मुझे जगा देना।
विषय वेदना से विषयों की मायाधीश छुड़ा देना।
रूप सुधा की एक बूद से जीवन मुक्त बना देना।
दिव्य ज्ञान भण्डार युगल चरणों की लगन लगा देना।
एक बार इस मन मन्दिर में कीजे पद संचार हरे।
पारवती पति हर-हर शम्भो पाहि-पाहि दातार हरे।।
 
दानी हो दो भिक्षा में अपनी अनपायनी भक्ति विभो।
शक्तिमान हो दो अविचल निष्काम प्रेम की शक्ति प्रभो।
त्यागी हो दो इस असार संसारपूर्ण वैराग्य प्रभो।
परम पिता हो दो तुम अपने चरणों में अनुराण प्रभो।
स्वामी हो निज सेवक की सुन लीजे करूण पुकार हरे।
पारवती पति हर-हर शम्भो पाहि-पाहि दातार हरे।।
 
तुम बिन व्यकुल हूँ प्राणेश्वर आ जाओ भगवन्त हरे।
चरण कमल की बॉह गही है उमा रमण प्रियकांत हरें।
विरह व्यथित हूँ दीन दुखी
हूँ दीन दयाल अनन्त हरे।
आओ तुम मेरे हो जाओ आ जाओ श्रीमंत हरे।
मेरी इस दयनीय दशा पर कुछ तो करो विचार हरे।
पारवती पति हर-हर शम्भो पाहि-पाहि दातार हरे।।
 
जय महेश जय जय भवेश जय आदि देव महादेव विभो।
किस मुख से हे गुणातीत प्रभुत तव अपार गुण वर्णन हो।
जय भव तारक दारक हारक पातक तारक शिव शम्भो।
दीनन दुःख हर सर्व सुखाकर प्रेम सुधाकर की जय हो।
पार लगा दो भवसागर से बनकर करूणा धार हरे।
पारवती पति हर-हर शम्भो पाहि-पाहि दातार हरे।।
 
जय मनभावन जय अतिपावन शोक नसावन शिवशम्भो।
विपति विदारण अधम अधारण सत्य सनातन शिवशम्भो।
वाहन वृहस्पति नाग विभूषण धवन भस्म तन शिवशम्भो।
मदन करन कर पाप हरन धन चरण मनन धन शिवशम्भो।
विश्वन विश्वरूप प्रलयंकर जग के मूलाधार हरे।
पारवती पति हर हर शम्भो पाहि-पाहि दातार हरे।।

शीश गंग अर्धग पार्वती सदा विराजत कैलासी।

शीश गंग अर्धग पार्वती सदा विराजत कैलासी।
नंदी भृंगी नृत्य करत हैं, धरत ध्यान सुखरासी॥
 
 शीतल मन्द सुगन्ध पवन बह बैठे हैं शिव अविनाशी।
करत गान-गन्धर्व सप्त स्वर राग रागिनी मधुरासी॥
 
यक्ष-रक्ष-भैरव जहँ डोलत, बोलत हैं वनके वासी।
कोयल शब्द सुनावत सुन्दर, भ्रमर करत हैं गुंजा-सी॥
 
कल्पद्रुम अरु पारिजात तरु लाग रहे हैं लक्षासी।
कामधेनु कोटिन जहँ डोलत करत दुग्ध की वर्षा-सी॥
 
 सूर्यकान्त सम पर्वत शोभित, चन्द्रकान्त सम हिमराशी।
नित्य छहों ऋतु रहत सुशोभित सेवत सदा प्रकृति दासी॥
 
ऋषि मुनि देव दनुज नित सेवत, गान करत श्रुति गुणराशी।
ब्रह्मा, विष्णु निहारत निसिदिन कछु शिव हमकू फरमासी॥
 
ऋद्धि सिद्ध के दाता शंकर नित सत् चित् आनन्दराशी।
जिनके सुमिरत ही कट जाती कठिन काल यमकी फांसी॥
 
त्रिशूलधरजी का नाम निरन्तर प्रेम सहित जो नरगासी।
दूर होय विपदा उस नर की जन्म-जन्म शिवपद पासी॥
 
कैलाशी काशी के वासी अविनाशी मेरी सुध लीजो।
सेवक जान सदा चरनन को अपनी जान कृपा कीजो॥
 
तुम तो प्रभुजी सदा दयामय अवगुण मेरे सब ढकियो।
सब अपराध क्षमाकर शंकर किंकर की विनती सुनियो॥

Friday, March 8, 2013

सोमवार मंगलम शिव मंगलम

सोमवार मंगलम शिव मंगलम
मन में रख लो शिव जी का
एतबार मंगलम
शिव मंगलम शिवा मंगलम
शुभ लाभ शम्भू शंकर मंगलम
सोमवार मंगलम
शिव ज्योति लिंग मंगलम
हर हर महादेव मंगलम 
मा पार्वती मंगलम
सदा शिव मंगलम
मंगलम सम्पूर्ण मंगलम
भोले नाथ मंगलम
शिव लोक मंगलम
देव आदि देव मंगलम
बाबा भोले शम्भू महादेव मंगलम
सोमनाथ मंगलम
महा -कालेश्वर मंगलम
बैधनाथ मंगलम
पशुपति नाथ मंगलम
काशी विश्वनाथ मंगलम
अमर नाथ मंगलम

तेरा पल पल बीता जाए, मुख से जप ले नमः शिवाय।

तेरा पल पल बीता जाए, मुख से जप ले नमः शिवाय।
ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय॥
 
 शिव शिव तुम हृदय से बोलो,
मन मंदिर का परदा खोलो।
अवसर खाली ना जाए,
मुख से जप ले नमः शिवाय॥
 
मुसाफिरी जब पूरी होगी,
चलने की मजबूरी होगी।
तेरा बिगड़ा प्राण रह जाये,
मुख से जप ले नमः शिवाय॥
 
शिव पूजन में मस्त बने जा
भक्ति सुधा रस पान किये जा।
दर्शन विश्वनाथ के पाय,
मुख से जप ले नमः शिवाय॥

ओम नमः शिवाय ओम नमः शिवाय

ओम नमः शिवाय ओम नमः शिवाय 
 
मेरे मन कहाँ खोया तू, शिव को मनाले तू,
चैन तुझे मिल जायेगा, बात ये जानले तू,
 
 वो है अन्तर्यामी, जग के स्वामी, सबके पालनकर्ता,
मितवा शरण मे उनकी जा, मितवा सुन लेगे तेरी सदा॥
 
बहती शंकर के जटा मे गंगा है – 2
धो देती पाप हो जाता मन चंगा है,
जो इन्हे पूजता है, भक्ति मे डूबता है – 2,
रहती जिन्दगी मे कमी कोई नही,
शिव कैलाशी है देव अविनाशी है,
कृपा से इनकी टल जाती यमफाँसी है,
खबर सबकी है इनसे नही कुछ छिपा॥१॥
 
 देकर अमृत खुद जहर पी डाला – 2,
तब नीलकण्ठ महादेव कहलाया,
भस्मासुर को दिया भस्मी कंगन – 2,
तब शिव भोला–भाला कहलाया,
आदि अनादि शिव जग का रखवाला है,
थोड़े मे होके खुश वर देने वाला है,
सब देवो से निराला ऐसा नही देव दूजा,
  काटलो जंजाल करके इनकी पूजा॥२॥

Thursday, March 7, 2013

शिवरात्रि हम सबका प्यारा त्योहार

ओम नम: शिवाय, बम-बम भोले
हर भक्त जयकारा लगा के बोले
हिमालय कन्या का मन-तन डोले
शिवजी चले ब्याहने भस्म उड़ोले
साथ में भूत-पिशाचों की है टोली
नंदी सवारी, माथे चंदन क़ी रोली
हाथ त्रिशूल, गले सर्पों क़ी माला
वाघंबर डाले, लिए पीत दुशाला
सुर-नर-मुनि डाले पुष्पों क़ी माला
भाल चंद्रमा सुंदर आनन सोहे
जटाजूट में गंगा मन को मोहे
रूप अनोखा,शृंगार है विचित्र
सृष्टि के सर्जनहार का है चित्र
द्वार-चार पर स्वागत हैं करते
विवाह वेदी पर पैरो को धोते
देख पार्वती को मुस्काए करतार
नयनो के द्वारे शिव पालनहार
विवाह उत्सव मनाते हर बार
शिवरात्रि हम सबका प्यारा त्योहार

बम बम लहरी बम भोले नाथ शिव शक्ति का मिलन है आज


डम डम डम डम डमरू बाजे
नंदीगन खड़े है जोड़े हाथ
भंग का रंग जमाए शंकर
विष्णु करे नृत्य देवन साथ
बम बम लहरी बम भोलेनाथ
बम बम लहरी बम भोले नाथ
 
 गोरी का भी रूप खिल गया
तारो से सजी है रात
धरती पर भी धूम मची
शिव शक्ति का मिलन है आज
बम बम लहरी बम भोलेनाथ
बम बम लहरी बम भोले नाथ
 
रूप अनोखा अद्भूत ऐसा
नागो को लिये है साध
अंग भभूती, भाल चन्द्रमा
डमरू त्रिशूल, धरे दोउ हाथ
बम बम लहरी बम भोलेनाथ
बम बम लहरी बम भोले नाथ

मैं तो हूँ भिखारी भोले तेरे द्वार का टुटा हुआ फूल हूँ मैं तेरे हार का

मैं तो हूँ भिखारी भोले तेरे द्वार का
टुटा हुआ फूल हूँ मैं तेरे हार का
मैं तो हूँ भिखारी भोले तेरे द्वार का
टुटा हुआ फूल हूँ मैं तेरे हार का
मैं तो हूँ भिखारी भोले तेरे द्वार का
 
 बड़ी आस लेके दाता पास तेरे आया हूँ
हाल क्या सुनाऊं सारे जग का सताया हूँ
बड़ी आस लेके दाता पास तेरे आया हूँ
हाल क्या सुनाऊं सारे जग का सताया हूँ
भूखा हूँ मैं भूतनाथ तेरे प्यार का-
टुटा हुआ फूल हूँ मैं तेरे हार का
मैं तो हूँ भिखारी बाबा तेरे द्वार का –
टुटा हुआ फूल हूँ मैं तेरे हार का
मैं तो हूँ भिखारी भोले तेरे द्वार का
 
 दानी कोई तेरे जैसा और नहीं दूजा है
इसीलिए घर – घर होती तेरी पूजा है
दानी कोई तेरे जैसा और नहीं दूजा है
इसीलिए घर – घर होती तेरी पूजा है
दुःख हरते हो दुखी-लाचार का-
टुटा हुआ फूल हूँ मैं तेरे हार का
मैं तो हूँ भिखारी बाबा तेरे द्वार का –
टुटा हुआ फूल हूँ मैं तेरे हार का
मैं तो हूँ भिखारी बाबा तेरे द्वार का
 
तुम्हारी हो किनारा और तुम्ही मझधार हो
नैया मेरी डूबे नहीं तुम्ही खेवनहार हो
तुम्हारी हो किनारा और तुम्ही मझधार हो
नैया मेरी डूबे नहीं तुम्ही खेवनहार हो
टूटे ना उम्मीद मेरे ऐतबार का-
टुटा हुआ फूल हूँ मैं तेरे हार का
मैं तो हूँ भिखारी बाबा तेरे द्वार का
टुटा हुआ फूल हूँ मैं तेरे हार का
मैं तो हूँ भिखारी बाबा तेरे द्वार का
 
आते हैं सवाली जो भी उनकी झोली भरते हो
किसी को भी खाली नहीं दर से टाल देते हो
आते हैं सवाली जो भी उनकी झोली भरते हो
किसी को भी खाली नहीं दर से टाल देते हो
मेरी भी झोली भर दो , सेवक आपका
टुटा हुआ फूल हूँ मैं तेरे हार का
मैं तो हूँ भिखारी भोले तेरे द्वार का
टुटा हुआ फूल हूँ मैं तेरे हार का
मैं तो हूँ भिखारी भोले तेरे द्वार का
टुटा हुआ फूल हूँ मैं तेरे हार का
टुटा हुआ फूल हूँ मैं तेरे हार का

नटराज राज नमो नमः

सत सृष्टि तांडव रचयिता
नटराज राज नमो नमः
 
हेआद्य गुरु शंकर पिता
नटराज राज नमो नमः
 
 गंभीर नाद मृदंगना धबके उरे ब्रह्माडना
नित होत नाद प्रचंडना
नटराज राज नमो नमः
 
 शिर ज्ञान गंगा चंद्रमा चिद्ब्रह्म ज्योति ललाट मां
विषनाग माला कंठ मां
नटराज राज नमो नमः
 
तवशक्ति वामांगे स्थिता हे चंद्रिका अपराजिता
चहु वेद गाए संहिता
नटराज राज नमोः

शिव अनंत शक्ति विश्व दीप्ति सत्य सुन्दरम

शिव अनंत शक्ति विश्व दीप्ति सत्य सुन्दरम /
प्रसीद मे प्रभो अनादि देव जीवितेश्वरम //
नमो नमो सदा शिवं पिनाकपाणि शंकरम /
जटान मध्य जान्ह्वी झ्ररर्झरति सुनिर्झरम //
भाल चन्द्र स्थितं भुजंगमाल शोभितम /
नमोस्तु रूद्ररूप ज्ञानगम्य हे महेश्वरम //१//
 
कराल कालकंटकं कृपालु सुर मुनीन्द्र्कम /
ललाट अक्ष धारकम प्रभो त्रिलोक नायकम //
परंतपं शिवम शुभम निरंक नित्य चिंतनम /
नमोस्तु रूद्ररूप ज्ञानगम्य हे महेश्वरम //२//
 
महास्वनं मृड़ोनटं त्रिशूलधर अरिन्दमम /
महायशं जलेश्वरं वसुश्रुआ धनागमम //
निरामयं निरंजनं महाधनं जरोतगम /
नमोस्तु रूद्ररूप ज्ञानगम्य हे महेश्वरम //३//
 
कनकप्रभं दुराधरं देवाधिदेव अव्ययम /
परावरं प्रभंजनम वरेण्य छिन्न संशयम //
अमृतपं अजितप्रियं उन्न्घ्रम अद्र्यालयम / .>.
नमोस्तु रूद्ररूप ज्ञानगम्य हे महेश्वरम //४//
 
परात्परं प्रभाकरं तमोहरं त्र्यम्बकम /
महाधिपं निरान्तकं स्तव्य कीर्तिभूषणम//
अनामयं मनोजवं चतुर्भुजं त्रिलोचनम /
नमोस्तु रूद्ररूप ज्ञानगम्य हे महेश्वरम//५//
 
स्तुत्य आम्नाय शम्भु शम्बरं परंशुभम /
महाहदं पदाम्बुजं रति: प्रतिक्षणम मम //
विद्वतं विरोचनं परावरज्ञ सिद्धिदम /
नमोस्तु रूद्ररूप ज्ञानगम्य हे महेश्वरम //६//
 
आत्मभू नभोगतिं जगदगुरुम नमो शिवम /
अलभ्य भक्ति देहि मे करोतु मे परम सुखम //
ओमकार ईश्वरं गणेश्वरम धनेश्वरम /
नमोस्तु रूद्ररूप ज्ञानगम्य हे महेश्वरम //७//
 
शिवस्य नाम अमृतं "उदय" त्रिताप नाशनम /
करोतु जाप मे मनम नमो नम: शिवम शिवम //
मोक्षदं नमो महेश ओमकार त्वम स्वयम /
नमोस्तु रूद्ररूप ज्ञानगम्य हे महेश्वरम //८//
 
पूजनं न अर्चनं न शक्ति भक्ति साधनम /
जपं न योग आसनं उपासनं आराधनम //
मन गुनंत प्रतिक्षणं शिवम शिवम शिवम शिवम /
नमोस्तु रूद्ररूप ज्ञानगम्य हे महेश्वरम //९ //

Shiva Shakti - Maha Shivratri





Jai Bhole Jai Shankar Jai Bhandari Jai Tripurari










OM NAMAH SHIVAYA


दया करो हे दयालु भोलेनाथ ।

शरण में आये हैं हम तुम्हारी,
दया करो हे दयालु भोलेनाथ ।
सम्हालो बिगड़ी दशा हमारी,
दया करो हे दयालु भोलेनाथ।
 
 न हम में बल है, न हम में शक्ति ।
न हम में साधन, न हम में भक्ति ।
तुम्हारे दर के हैं हम भिखारी,
दया करो हे दयालु भोलेनाथ ।

प्रदान कर दो महान शक्ति,
भरो हमारे में ज्ञान भक्ति ।
तभी कहाओगे ताप हारी,
दया करो हे दयालु भोलेनाथ ।

जो तुम पिता हो, तो हम हैं बालक ।
जो तुम हो स्वामी, तो हम हैं सेवक ।
जो तुम हो ठाकुर, तो हम पुजारी ।
दया करो हे दयालु भोलेनाथ ।

भले जो हैं हम तो हैं तुम्हारे |
बुरे जो हैं हम तो हैं तुम्हारे |
तुम्हारे हो कर भी हम दुखारी |
दया करो हे दयालु भोलेनाथ ।

कर ऐसी इनायत भोलेनाथ तेरा शुक्र मनाना आ जाये

कर ऐसी इनायत भोलेनाथ तेरा शुक्र मनाना आ जाये,
हम इन्सां हैं हमें इन्सानों की तरह प्यार निभाना आ जाये।
 
तेरे कदम हमारी चौखट हैं, हम गिरते रहे तेरे कदमों में,
पर ऐसी शक्ति दे हमें गिरतों को उठाना आ जाये।
 
मुझे ये न मिला मुझे वो नमिला ये दिल ऐसे ही रोता है,
तेरा प्यार ही मेरी दौलत हो ये दिल को समझाना आ जाये।
 
ये तन मन धन तेरा मुझे फिर क्या चिंता,
हम तेरे दीवाने हैं प्यारे हमें प्यार निभाना आ जाये।
 
वो मस्त तुझी में रहते हैं जो तेरे दीवाने होते हैं,
हम तेरे दीवाने बन जायें और सर को झुकाना आ जाये।
 
 बोलो के सुन्दर नक्शे पर हम रंग प्यार का भर पायें,
तेरी हम पर कृपा हो हमें फूल चढाना आ जाये।

निरंजनो निराकरो एको देवो महेश्वर

"निरंजनो निराकरो एको देवो महेश्वर:।
मृत्यू मुखम् गतात् प्राणं बलात रक्षति:॥"

"निरंजन एंव निराकार महेश्वर ही एक मात्र देव हैं 
जो मृत्यू के मुख मे गए हुए प्राणों की बलपुर्वक रक्षा करने में समर्थ हैं।"

 ♥ ~ हर हर महादेव ~ ♥